एक #योगी की कहानी.....
"कल रात से कहाँ था रे तू ?
यह क्या #गेहुंआ_अँगोछा पहन के आया है?
तेरी अम्मा पूरी रात पहाड़ियों में ढूंढ ढूंढकर पागल हुए जा रही है और तू कहाँ भाग गया था?"
#अजय चुपचाप पिता की डांट सुनता रहा।
तू बोलता क्यों नही है लगता है गलत संगतियों में पड़कर कोई अपराधी तो नही बन गया, बोल बोलता क्यों नही है???
"मैं #सोन_पहाड़ी वाले नाथों के पास था" #अजय सिर झुकाए खड़ा था।
वहाँ क्या कर रहा था मेरे बेटे?
माँ #सावित्री ने सिर पर हाथ रखकर प्यार से पूछा!
माँ!! मैने #सन्यासी बनने का विचार किया है?
क्या? तू पागल तो नही हो गया है?
ये क्या कह रहा है?
कोई ऐसे ही #सन्यासी नही होता ऐसी बाते मत कर !
तू तो #विज्ञान की पढ़ाई करके #वैज्ञानिक बनना चाहता था रे
नही #माँ मैं सचमुच #सन्यासी बनना चाहता हूं मेरा प्रारब्ध यहां नही है, यह समाज मुझे आतर्भाव से पुकार रहा है।
मुझे जाना होगा माँ!
किसी को तो इस यज्ञ की आहुति बनना होगा,
तो क्या तू कभी वापस नही आएगा?
पिता #आनंद_बिष्ट ने रोते हुए कहा जब मैं मर रहा होऊंगा तब भी नही...
#पिताजी! मैं अपने कर्मो से आपको तर्पण दूँगा।
अभी पिता की मौत का समाचार सुनकर भी रुंधे हुए गले से एक #नाथ अफसरों को मीटिंग में कोरोना से सम्बन्धित आदेश दे रहे थे और उन्होंने पिता के अंतिम संस्कार से ऊपर अपने कर्म को रखा अपने प्रदेश की जनता को रखा, और निरंतर सेवा में लगे हुए हैं।
#उत्तरप्रदेश का सौभाग्य ही है कि ऐसा कर्मनिष्ठ #मुख्यमंत्री के रूप में कर्मयोगी मिला मुझे गर्व है उस माँ की कोख पर जिससे #योगी_जी जैसे #कर्मयोगी बेटे जन्म लेते हैं।
उस #माँ को मेरा सादर प्रणाम!!! 🙏🙏